विश्व प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है।
जगन्नाथ रथ यात्रा का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। इस रथ यात्रा का आयोजन ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से किया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा में भक्तों की भारी भीड़ होती है। हालांकि कोरोना वायरस के चलते इस साल जगन्नाथ रथ यात्रा बिना श्रद्धालुओं के निकाली जा रही है.
पुरी की यह रथ यात्रा सद्भाव, भाईचारे और एकता की प्रतीक है।
भगवान बलराम, श्री जगदीश और देवी सुभद्रा का रथोत्सव ओडिशा के पुरी में मनाया जा रहा है। इस दौरान तीनों की मूर्तियों को अलग-अलग रथों में स्थापित कर बेहद भव्य तरीके से रथयात्रा निकाली जाती है. पुरी की यह रथ यात्रा सद्भाव, भाईचारे और एकता की प्रतीक है। इस यात्रा में भाग लेने के लिए देश के विभिन्न कोनों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं और भगवान के रथ को खींचकर सौभाग्य प्राप्त करते हैं। कहा जाता है कि जो भी रथ यात्रा में शामिल होता है उसे हर तरह की सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। लेकिन, इस बार कोरोना वायरस के चलते श्रद्धालुओं को इसमें शामिल होने का मौका नहीं मिला है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार रथ यात्रा एक सीमित क्षेत्र में ही पुरी में निकाली जाएगी। कोर्ट ने कोरोना के डेल्टा प्लस संस्करण और तीसरी लहर की संभावना को देखते हुए ओडिशा सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए पूरे राज्य में रथ यात्रा पर रोक लगा दी है.
हिन्दू धर्म में इस रथ यात्रा का बड़ा महत्व बताया जाता है
जगन्नाथ रथ यात्रा का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ को रथ यात्रा निकालने के बाद प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर में ले जाया जाता है, जहां भगवान 7 दिनों तक विश्राम करते हैं। इसके बाद भगवान जगन्नाथ की वापसी यात्रा शुरू होती है। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा को पूरे भारत में एक त्योहार की तरह मनाया जाता है।
सौ यज्ञों के समान माना जाता है रथ यात्रा का पुण्य
भगवान कृष्ण के अवतार 'जगन्नाथ' की रथ यात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर बताया गया है। यदि कोई भक्त इस रथ यात्रा में भाग लेकर भगवान के रथ को खींचता है तो उसे यह फल मिलता है। जगन्नाथ रथ यात्रा दस दिवसीय उत्सव है। यात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया के दिन श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ शुरू होती है।
रथ यात्रा का इतिहास सदियों से भी पुराना है
सदियों से चली आ रही इस रथ यात्रा के दौरान, श्री जगन्नाथजी, बलभद्रजी और सुभद्राजी अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर के दर्शन करने के लिए रथ पर बैठते हैं, जो तीन किलोमीटर दूर है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की दशमी को तीनों अपने-अपने स्थान पर आकर मंदिर में बैठ जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस रथ यात्रा को देखने मात्र से ही सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।