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महावीर स्वामी का सबसे बड़ा सिद्धांत अहिंसा का था। उन्होंने अपने अनुयायी के लिए अहिंसा, सत्य, आचार्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच व्रतों का पालन करना सिखाया।

वर्धमान ने केवल तीस वर्ष की आयु में ज्ञान प्राप्ति के लिए महल के भोगों का परित्याग करके तपस्या का मार्ग अपनाया था।

महावीर जयंती को जैन समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। जैन ग्रंथों के अनुसार जैन समाज के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को हुआ था, जिसके कारण जैन धर्म के लोग इस दिन को उनके जन्मदिन के रूप में मनाते हैं। इस बार महावीर जयंती 06 अप्रैल को मनाई जाएगी। भगवान महावीर ने पूरे समाज को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया। भगवान महावीर ने दुनिया भर में अहिंसा परमो धर्म का संदेश फैलाया।

उनके बचपन का नाम वर्धमान था। उनका जन्म बिहार में 599 ईसा पूर्व में लिच्छवि वंश के महाराजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ हुआ था। वर्धमान ने केवल तीस वर्ष की आयु में ज्ञान प्राप्ति के लिए महल के भोगों का परित्याग कर दिया था, उसके बाद उन्होंने तपस्या का मार्ग अपनाया था। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने 12 साल की कठोर तपस्या के बाद अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त की थी। इसलिए उन्हें महावीर के नाम से पुकारा गया।

महावीर स्वामी के सिद्धांत: महावीर स्वामी का सबसे बड़ा सिद्धांत अहिंसा का था। इसलिए उन्होंने बताया है कि उनके प्रत्येक अनुयायी के लिए अहिंसा, सत्य, आचार्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच व्रतों का पालन करना आवश्यक है। इन सभी व्रतों में अहिंसा की भावना का समावेश होता है। इसी कारण जैन विद्वानों की प्रमुख शिक्षा 'अहिंसा ही परम धर्म है। अहिंसा परम ब्रह्म है। अहिंसा ही सुख और शांति का एकमात्र स्रोत है। अहिंसा ही संसार का एकमात्र रक्षक है।

यही मनुष्य का सच्चा धर्म है। यही मनुष्य का सच्चा कार्य है। महावीर जयंती के दिन जैन मंदिरों में महावीर जी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। इसके बाद मूर्ति को रथ पर बिठाया जाता है और सड़कों पर उसका जुलूस निकाला जाता है। इस जुलूस में जैन धर्म के अनुयायी सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। वैसे तो पूरे भारत में जैन समुदाय के लोग इस पर्व को मनाते हैं। लेकिन इसकी खास खूबसूरती गुजरात और राजस्थान में देखने को मिलती है। क्योंकि इन राज्यों में जैन धर्म को मानने वालों की संख्या काफी ज्यादा है।


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