मन्नट्टू पद्मनाभन ने उस समय नायर में अंध विश्वास को दूर करने के लिए 'नायर सर्विस सोसाइटी' नामक एक संस्था की स्थापना की थी। केरल को भारत में शामिल करने के आंदोलन में उन्हें 68 साल की उम्र में जेल जाना पड़ा था।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मन्नाथु पद्मनाभन जी की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि दी। उन्होंने अपने ट्वीट में कहा, 'आने वाली पीढ़ियां समाज सेवा, सामाजिक न्याय और सांस्कृतिक पुनरुत्थान में उनके द्वारा किए गए योगदान के लिए मन्नाथु पद्मनाभन की आभारी होंगी। उनका जीवन पूरी तरह से दूसरों की भलाई के लिए समर्पित था। उनकी जयंती पर मैं उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
केरल में पैदा हुए मन्नाथु पद्मनाभन एक प्रसिद्ध भारतीय समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे। वे 2 जनवरी 1878 से 25 फरवरी 1970 तक जीवित रहे। उन्होंने अस्पृश्यता विरोधी आंदोलनों में भाग लिया और सभी जातियों के लोगों के मंदिरों में प्रवेश की वकालत की। मन्नम के घर की आर्थिक स्थिति और उसके जन्म के कुछ महीने बाद ही उसके माता-पिता के अलग होने के कारण मन्नम का बचपन बहुत अभाव की स्थिति में बीता।
उन्होंने अपनी शिक्षा भी पूरी नहीं की। सबसे पहले 16 साल की उम्र में उन्हें पांच रुपये प्रति माह के वेतन पर एक प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक की नौकरी मिली, जहां वे दस साल तक इस पद पर रहे। इसके बाद मन्नट्टू पद्मनाभन ने कानून की प्रैक्टिस करने का फैसला किया। उस समय वह मजिस्ट्रियल परीक्षा पास करने पर वकालत कर सकता था। उसने परीक्षा पास की और कानून की प्रैक्टिस करने लगा। पांच रुपये प्रतिमाह वेतन के स्थान पर अब उसकी आय चार सौ रुपये प्रतिमाह होने लगी।
अब मन्नम ने अपने नायर समाज पर ध्यान दिया। मन्नट्टू पद्मनाभन ने उस समय नायर समाज में अंध विश्वास को दूर करने के लिए 'नायर सर्विस सोसाइटी' नामक संस्था की स्थापना की थी। केरल के भारत में विलय के आंदोलन में उन्हें 68 साल की उम्र में जेल भी जाना पड़ा था। उनके बहुमुखी सेवा कार्य के लिए उन्हें 1966 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया था।