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दुर्गा पूजा या दुर्गोत्सव दक्षिण एशिया में मनाया जाने वाला, एक हिन्दू त्यौहार है।

दुर्गा पूजा में हिन्दू देवी दुर्गा की पूजा की जाती है, कहा जाता है दुर्गा ने महिषासुर को अपने सिंह के साथ वध किया।

दुर्गा पूजा, दुर्गोत्सव अथवा शरदोत्सव दक्षिण एशिया में मनाया जाने वाला, एक वार्षिक हिन्दू पर्व है जिसमें हिन्दू देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इसमें छः दिनों को महालय, षष्ठी, महा सप्तमी, महा अष्टमी, महा नवमी और विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। दुर्गा पूजा को मनाये जाने की तिथियाँ पारम्परिक हिन्दू पंचांग के अनुसार आता है तथा इस पर्व से सम्बंधित पखवाड़े को देवी पक्ष, देवी पखवाड़ा के नाम से जाना जाता है। दुर्गा पूजा का पर्व हिन्दू देवी दुर्गा की बुराई के प्रतीक राक्षस महिषासुर पर विजय के रूप में मनाया जाता है। अतः दुर्गा पूजा का पर्व बुराई पर भलाई की विजय के रूप में भी माना जाता है। पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, झारखण्ड, मणिपुर, ओडिशा, और त्रिपुरा आदि भारतीय राज्यों व्यापक रूप से मनाया जाता है जहाँ इस समय पांच-दिन की वार्षिक छुट्टी रहती है। बंगाली हिन्दू और आसामी हिन्दुओं का बाहुल्य वाले क्षेत्रों पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा में यह वर्ष का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है।

यह न केवल सबसे बड़ा हिन्दू उत्सव है बल्कि यह बंगाली हिन्दू समाज में सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण उत्सव भी है। पश्चिमी भारत के अतिरिक्त दुर्गा पूजा का उत्सव दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में भी मनाया जाता है। दुर्गा पूजा का उत्सव 91% हिन्दू आबादी वाले नेपाल और 8% हिन्दू आबादी वाले बांग्लादेश में भी बड़े त्यौंहार के रूप में मनाया जाता है। वर्तमान में विभिन्न प्रवासी आसामी और बंगाली सांस्कृतिक संगठन, संयुक्त राज्य अमेरीका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस, नीदरलैण्ड, सिंगापुर और कुवैत सहित विभिन्न देशों में आयोजित करवाते हैं। वर्ष 2006 में ब्रिटिश संग्रहालय में विश्वाल दुर्गापूजा का उत्सव आयोजित किया गया। दुर्गा पूजा की ख्याति ब्रिटिश राज में बंगाल और भूतपूर्व असम में धीरे-धीरे बढ़ी। हिन्दू सुधारकों ने दुर्गा को भारत में पहचान दिलाई और इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों का प्रतीक भी बनाया। दिसम्बर 2021 में कोलकाता की दुर्गा पूजा को यूनेस्को की अगोचर सांस्कृतिक धरोहर की सूची में सम्मिलित किया गया।

दुर्गापूजा की सप्तमी की सुबह में नबपत्रिका स्नान:-
बंगाल, असम, ओडिशा में दुर्गा पूजा को अकालबोधन ("दुर्गा का असामयिक जागरण"), शरदियो पुजो ("शरत्कालीन पूजा"), शरोदोत्सब ("पतझड़ का उत्सव"), महा पूजो ("महा पूजा"), मायेर पुजो ("माँ की पूजा") या केवल पूजा अथवा पुजो भी कहा जाता है। पूर्वी बंगाल (बांग्लादेश) में, दुर्गा पूजा को भगवती पूजा के रूप में भी मनाया जाता है। इसे पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, ओडिशा, दिल्ली और मध्य प्रदेश में दुर्गा पूजा भी कहा जाता है। दिल्ली-एनसीआर में पिछले कुछ वर्षों में, 250 से अधिक अलग-अलग पंडालों में दुर्गा पूजो आयोजित की जाती है। रामनाथ निषाद बंगाल, असम, ओडिशा में दुर्गा पूजा को अकालबोधन ("दुर्गा का असामयिक जागरण"), शरदियो पुजो ("शरत्कालीन पूजा"), शरोदोत्सब (बांग्ला: শারদোৎসব ("पतझड़ का उत्सव"), महा पूजो ("महा पूजा"), मायेर पुजो ("माँ की पूजा") या केवल पूजा अथवा पुजो भी कहा जाता है। पूर्वी बंगाल (बांग्लादेश) में, दुर्गा पूजा को भगवती पूजा के रूप में भी मनाया जाता है। इसे पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, ओडिशा, दिल्ली और मध्य प्रदेश में दुर्गा पूजा भी कहा जाता है। दिल्ली-एनसीआर में पिछले कुछ वर्षों में, 250 से अधिक अलग-अलग पंडालों में दुर्गा पूजो आयोजित की जाती है।

पूजा को गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, केरल और महाराष्ट्र में नवरात्रि के रूप में कुल्लू घाटी, हिमाचल प्रदेश में कुल्लू दशहरा, मैसूर, कर्नाटक में मैसूर दशहरा, तमिलनाडु में बोमाई गोलू और आन्ध्र प्रदेश में बोमाला कोलुवू के रूप में भी मनाया जाता है। पतझड़ (शरतकाल) के समय दुर्गा की पूजा बंगाल में सबसे बड़ा हिन्दू पर्व है। दुर्गा पूजा नेपाल और भूटान में भी स्थानीय परम्पराओं और विविधताओं के अनुसार मनाया जाता है। पूजा का अर्थ "आराधना" है और दुर्गा पूजा बंगाली पंचांग के छटे माह अश्विन में बढ़ते चन्द्रमा की छटी तिथि से मनाया जाता है। तथापि कभी-कभी, सौर माह में चन्द्र चक्र के आपेक्षिक परिवर्तन के कारण इसके बाद वले माह कार्तिक में भी मनाया जाता है। ग्रेगोरी कैलेण्डर में इससे सम्बंधित तिथियाँ सितम्बर और अक्टूबर माह में आती हैं। साल 2018 मे देश की सबसे महंगी दुर्गा पूजा कोलकाता में हुई, जँहा पद्मावत की थीम पर बना 15 करोड़ का पंडाल लगाया गया था। रामायण में राम, रावण से युद्ध के दौरान देवी दुर्गा को आह्वान करते हैं। यद्यपि उन्हें पारम्परिक रूप से वसन्त के समय पूजा जाता था। युद्ध की आकस्मिकता के कारण, राम ने देवी दुर्गा का शीतकाल में अकाल बोधन आह्वान किया।


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